शनिवार, 24 अप्रैल 2010

सर्व गोत्रा मुखिया महा सम्मेलन/ दिनांक ८.९.२००२

सर्व गोत्रा मुखिया महा सम्मेलन

स्थान:
सर छोटूराम पार्क, सिविल रोड़, छोटूराम चौक, रोहतक
दिनांक ८.९.२००२

सर्व गौत्रा मुखिया महा-सम्मेलन

आठ सितम्बर २००२ ईस्वी को प्रात: ९ बजे से स्वागत तथा पंजीकरण का कार्य आरम्भ हुआ। स्वागत कक्ष में पंजीकरण के उपरान्त प्रत्येक आमंत्रिात सदस्य को उनके पद के अनुसार निशान लगे हुए तीन प्रकार के बिल्ले दिए गए। जिन पर गौत्रा मुखिया, गौत्रा प्रतिनिधी तथा विशेष आमंत्रिात प्रकाशित किया हुआ था।

लगभग १०.३० बजे तक सभी अतिथि पहंुच चुके थे और दीन बन्धु सर छोटू राम मैमोरियल के बड़े हाल में विराजमान हो गए थे। ठीक समय पर इस सम्मेलन के प्रधान व्योवृद्ध, शिक्षाविद् इतिहासकार प्रिंसिपल हुक्म सिंह जी पधारे जिनका सभी उपस्थित जनो ने खड़े हो कर अभिनन्दन किया। कर्नल चन्æ सिंह दलाल, संयोजक तथा डा० जसफूल सिंह, कार्यकारी अधिकारी, हरियाणा नवयुवक कला संगम रोहतक ने मुख्य अतिथि को पुष्प भेंट करके स्वागत किया।विधिवत कार्यवाही आरम्भ होने से पूर्व प्रधान जी की आज्ञा से डाक्टर जसफूल सिंह ने सभी आमंत्रिात व्यक्तियों का स्वागत किया।

आदरणीय प्रधान जी की आज्ञा से,

मैं डॉ० जसफूल सिंह, कार्यकारी निदेशक, हरियाणा नवयुवक कला संगम अपनी और संस्था की ओर से गोत्रा मुखिया, प्रतिनिधि तथा विशेष आमन्त्रिात अतिथियों का स्वागत करता हूँ। हमारी संस्था पिछले १६ वर्षो से सामाजिक उत्थान व कल्याण के लिए कार्यरत है। अपना सामाजिक कर्तव्य निभाते हुए हमने इस सम्मेलन का आयोजन किया है। सम्मेलन बुलाने के लिए
कई बार सोच-विचार कर, इसके स्वरूप पर चिन्तन किया गया और आप सब लोगों को इसी योजना के तहत निमन्त्राण पत्रा भेजे गये। यह सम्मेलन अराजनैतिक तथा सामाजिक है।

मुझे पूर्ण आशा है कि आप सब साहेबान इस सम्मेलन में बढ़-चढ़कर अपने विचार रखेगें और यथोचित निर्णय लेकर कामयाब बनायेगें। संयोजन हमारी संस्था के प्रधान व समाज सेवी ले० कर्नल चन्द्र सिंह दलाल करेेंगे।

इस सम्मेलन के आरम्भ में सम्मेलन के संयोजक द्वारा सम्मेलन के उíेश्यों पर मुख्य आलेख पढ़ा जाएगा। उसके उपरान्त भोजनावकाश तक खुला अधिवेशन होगा जिसमे आप सब साहेबान अपने विचार रख सकते है। मुख्य मुíा यही रहेगा कि गोत्रा समीकरण की समस्या के उत्पन्न होने पर क्या, हमें इसमें बदलाव लाने चाहिए या नही। भोजन के बाद प्रस्तावों पर विचार-विमर्श किया जायेगा। जो सज्जन प्रस्ताव रखना चाहते है वो अपना प्रस्ताव तथा नाम संयोजक तक पहुँचा दे।

मैं आपका यहाँ पधारने के लिए और मुल्यवान समय देने के लिए आभारी हूँ और एक बार पुन: स्वागत करता हूँ। और ले० कर्नल चन्द्र सिंह जी से निवेदन करता हूँ कि वह आकर अपना मुख्य सम्भाषण पढ़े और संचालन करें।

इसके उपरान्त संयोजक ने मुख्य आलेख पढ़ना आरम्भ किया :

आदरणीय प्रधान जी, गुरूजी व आमंत्रिात गोत्रा मुखियाओं और विशेष आंमत्रिात विद्वानों का आभार। बुजुर्गों, भाइयों और अजीजो! विचार-विमर्श करने के लिये इस सम्मेलन के आयोजन की जरूरत क्यांे पड़ी? हम जिन विषयों पर
यहां चर्चा करने के लिये मौजूद हैं उनके बारे में बताना चाहूंगा। इस सभा में आज गोत्राों के मुखिया और प्रतिनिधि उपस्थित हैं और विशेष तौर पर बुलाये गये विद्वान और मैजिज जणे भी मौजूद हैं। यहां कितने प्रस्ताव पास होंगे इसका जिक्र तीसरी बैठक के बाद किया जायेगा।

सभी जानते हैं कि भाईचारा पंचायतों का जन्म हजारों साल पुराना है चाहे इसका स्वरूप बदलता रहा हो। वैदिक काल में इन्हें संघ, समूह, परिषद तथा समुदाय इत्यादि के नाम से जाना जाता रहा है। ‘पूगा’ शब्द पूरे भारत में प्रचलित रहा है। कुल, गोत्रा और खाप पंचायत के बाद सबसे उपर की पंचायत को ही ‘पूगा’ कहा गया है।

कभी-कभी तो पंचों को उस समय के शासकों द्वारा भी मनोनीत किया जाता था और भाईचारा पंचायत को प्रशासन की ओर से पूर्ण सहयोग मिलता था। आज हमें यह सहयोग प्राप्त नहीं है। आज का प्रशासन केवल मौन दर्शक बनकर हमारी भाईचार पंचायतों की कार्रवाई और निर्णयों को देखता रहा है और निष्क्रिय रहता है। बहुत समय से भाईचारा पंचायतों ने बड़े उतार-चढ़ाव देखे हैं। समाज के संचालन और कल्याण में भाईचारा पंचायतों का बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। समाज में इन पंचायतों की भूमिका को नकारा नहीं गया है। ये आज भी प्रासंगिक हैं और आगे भी रहेंगी।

साथियो ! मूलरूप से भाईचारे की पंचायतों का आधार दो प्रकार से माना जाता है। एक तो है ‘पूगा’ जिसमें गांव की छत्तीस बिरादरी की पंचायतों के प्रतिनिधियों से लेकर चौगामा, सतगामा-सतरोल-सातबास, अठगामा, बाहरा, चौबीसी, चालीसा, बहत्तरा, चौरासी तथा तीन सौ साठ-पालम सर्वखाप महापंचायत तक का संगठन और दूसरा है गोत्रा खापों की पंचायतें।

हमें मालूम है कि इन पंचायतों की भूमिका परस्पर झगड़ों को भाईचारे के तहत निपटाने की रही है और ऐसी पंचायतें ज्यादातर सही और न्यायपूर्ण निर्णय लेती रही हैं। भाईचारा पंचायतें को झगड़े की जड़ और सही स्थिति का जायजा लेने की सामथ्र्य होती है। स्थानीय होने के कारण उन्हें सचाई मालूम होती है। वे दूध और पानी को अलग करते हैं और अपने निर्णयों का कड़ायी से लागू करवाने और उनके पालन को देखने में भी वे कतई नहीं कतराते। पंचायतों के निर्णय लागू करने के लिए सामाजिक दबाव पर्याप्त होते रहे हैं। लेकिन देखने में आ रहा है आज बेशक हमारे सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनैतिक और शैक्षिक और वैज्ञानिक आधार, सरोकार और परिदृश्य काफी हद तक बदल चुके हैं लेकिन कहना न होगा कि इन पंचायतों के फैसलों को लोक अदालत की तर्ज पर प्रशासन द्वारा मान्यता मिल जाये तो इसका आधार व्यापक हो जाता है।

इन्हीं भाईचारा सर्वखाप पंचायतों ने देश पर आए संकट की घड़ी में डटकर मुकाबला किया भारत की आजादी के प्रथम युद्ध में १८५७ में दिया गया इनका योगदान सदैव याद रहेगा।

भाईचारा पंचायतों ने सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में अभी तक सराहनीय काम किया है। ऐसे कई उदाहरण है जहां चिन्ताजनक स्थितियों में बहुत ही बिगड़ी हुई परिस्थितियों में, गंभीर रूप से संवेदनशील मामलों को पंचायतों ने बड़ी बुद्धिमानी और न्यायपूर्णता से सुलझाया और दो फिरकों के बीच झगड़े को सुलझा कर फिर से अमन कायम किया। इसलिए भूमिका नही नजरिया बदलना होगा।
गोत्रा पंचायतों की बात करें तो मुझे इस सम्मेलन को आयोजित करने की बात कब और कहां सूझी यह विनयपूर्वक निवेदन करना चाहता हूं। पिछले कई महीनों से, बल्कि कई सालों से ही, लगातार गोत्रा विवाद के समाचार प्राप्त होते रहे हैं। इनमें ज्यादातर विवाह संबंधी विवाद होते हैं। इसके बारे में रोहतक बार एसोशियेसन की अनौपचारिक बैठकों में कितनी ही बार जिक्र होता रहा है। गोत्रा पंचायतों में जो भी निर्णय लिये गये उन पर भी विचार होता रहा है। ऐसा महसूस हुआ कि निर्णय लेते समय दूसरे पक्ष के दृष्टिकोण का पर्याप्त ख्याल नहीं रखा गया था जबकि सभी गोत्रा प्रतिनिधि या पंच-रहनुमा अपने-अपने स्थान पर अपनी-अपनी बात ठीक से प्रस्तुत करते या कहते हुए भी प्रतीत होत रहे हैं। इसके बावजूद टकराव की स्थिति बरकरार क्यों रही? इस प्रकार के पंचायती फैसलों पर लोग प्रश्नचिन्ह क्यों लगाने लगे है? हमसे कहां चूक होती रही है?

इन तथ्यों को सामने रखकर कई विद्वान भाईयों से सलाह-मशवरा करके यह सम्मेलन बुलाया गया है। अगर मुझे ठीक से याद है तो ऐसा पिछला सर्वगोत्रा मुखिया महासम्मेलन सन् १९११ में दहिया बरोणा में आयोजित हुआ था। हालांकि इसके बाद सिसाणा और बेरी में महापंचायतें हुई लेकिन उनका स्वरूप व्यापक नहीं था। सन् १९११ में जो महासम्मेलन हुआ था उसमें दहिया चालीसा के मुखिया मटीण्डू गांव के चौधरी व जैलदार पीरूसिंह की बड़ी भूमिका रही थी। उस समय ब्रिटिश राज के कुछ उच्चधिकारी भी आब्ज+र्वर की नीयत से उपस्थित थे।

खैर, गोत्रा मुखिया अपना मूल्यवान समय देकर यहां एकत्रिात हुए हैं और समाज के बदलते परिवेश में धरातल पर उभरती हुई समस्याओं पर विचार-विमर्श भी करेंगे और कुछ महत्वपूर्ण व दीर्घकाल में हमारे समाज पर प्रभाव डालने वाले निर्णय भी जरूर लेंगे, ऐसी मुझे उम्मीद है। यह भी उम्मीद है कि इस समय खाप पंचायतों के निर्णयों को लेकर हमारे सामने अपने भविष्य के बारे में और हालिया वाकयों को लेकर जो हास्यास्पद स्थिति पैदा हो गयी हे उसका भी कुछ हल निकलेगा।

साथियों! हमारे सामने बदलते हुए नैतिक मूल्यों व बदलते हुए गोत्रा समीकरणों की समस्या सर्वप्रमुख है। जब से पिता की जमीन-जायदाद में लड़कियों की हिस्सेदारी का कानूनी हक हो गया है तब से कोई विरला ही ऐसा गांव बचा होगा जो कई गोत्रा का होने से बचा होगा। प्रश्न उठता है कि क्या हम आज भी वैवाहिक संबंध स्थापित करते समय उस गांव में रह रहे सभी गोत्रा बचाने में पूरे तौर पर समर्थ हैं? कानून की भाषा में या समाज की भाषा में क्या हम आज भी हजारों साल से चले आ रहे पारंपरिक नियमों और रीति-रिवाजों, अर्थात ‘कस्टमरी लॉ’, का पालन करने में पूरे तौर पर व्यवहारिक हैं? उत्तर है, नहीं। तो फिर हमें आज इस विषय पर भी विचार-विमर्श करके तय करना है कि भविष्य में हमारे लिये उचित क्या है और गोत्रा-बंधन की सीमा-रेखा क्या होगी। ऐसा इसलिये कि अभी तक कई विवाद सुलझ नहीं पाये हैं जैसे कि जौणधी, नयाबास, काकड़ौद, मकड़ाना वगैरह के। बेशक हम इन विवादों के निपटारे के लिये यहां इकट्ठा नहीं हुए हैं फिर भी हमें कुछ दिशा-निर्देश तो देने ही होंगे। इन विवादों के मूल कारण और इनसे उत्पन्न गंभीर स्थिति के विषय में सोच-विचार करना समय की मांग के अनुसार हमारे लिये उचित होगा।

एक और महत्वपूर्ण घटना हमें नजर आती है। वह है इन पंचायती सम्मेलनों में असली स्याणे बूढ़ों का कन्नी काटते नजर आना। वे इन पंचायतों में मौजूदगी नहीं चाहते क्योंकि अव्वल तो उन्हें कोई पूछता नहीं और बुला भी लिये जायें तो कोई उनकी बात नहीं मानना चाहता। हमें उनकी सहभागिता सुनिश्चित करनी होगी और पुन: उन्हें सम्मान की भागीदारी की ओर लौटाना होगा।

आज के गांव का युवक पुराने रीति-रिवाजों और नैतिक मूल्यों को ताक पर रखता नजर आता है। क्योंकि उसके सामने विवाह करने की कठिन समस्या मौजूद है। हरियाणा में मादा-भ्रूण हत्या के चलते १०० लड़कोंे के लिये ८० लड़कियां ही हैं। उुपर से गोत्रा बचाने की समस्या भी मौजूद रहती है। नवयुवक इन सभी समस्याओं के अलावा रोजगार जैसी समस्या और फसलों के लिये घटती जमीन की समस्या से भी जूझ रहा है। उसे कोई रास्ता तो ढूंढना ही है। हर रोज गोत्रा व विवाह संबंधी कोई न कोई नयी समस्या या विवाद खड़ा हो जाता है और हम इसका कोई सर्वमान्य या कल्याणकारी हल निकालने में असमर्थ नजर आते रहे हैं। इस मामले में मौजूदा कानून तो हमारी मदद नहीं करता नजर आता पंरतु विज्ञान जरूर हमें राह दिखा रहा है और वैज्ञानिक जानकारी हमारे मार्गदर्शन के लिये पर्याप्त मात्राा में उपलब्ध है। तब फिर हम इसका फायदा न उठाकर क्यों अर्थहीन विवादों में उलझते जा रहें हैं और जगहंसायी करवाते हैं। इससे पहले कि ये समस्याएं बेकाबू होकर अराजकता की स्थिति उत्पन्न कर दें, हमें इसका कोई कारगर व दीर्घकालीन हल खोजना ही होगा।

आज के दिन वक्त ही आवाज को सुनकर और हालात के तकाजे का सही आकलन करके क्यों न हम बिगड़ती हुई स्थिति को संभालें और ठोस और दीर्घकालीन निर्णय लें। आज की यह सभा इन मामलों पर दृढ़ता से विचार करेगी, ऐसा मेरा निवेदन है।

आज जब हम इकठ्ठा हुये ही हैं तो लगे हाथ कुछ प्रचालित सामाजिक कुरीतियों के बारे में भी विचार-विमर्श कर लें और फैसले लें। सतरहवीं, तेरहवीं और विवाहोत्सवों पर होने वाले भारी खर्च की समस्याएं हमारे सामने हैं ही।

भाइयों! ये न तो रैली है और न ही सर्वखाप या गोत्रा पंचायत। आप सभी उपस्थित जन समझदार और जिम्मेवाद गोत्रा मुखिया है या अन्य विद्वज्जन। आप सभी से यह उम्मीद है कि इस मंच पर आकर दिल खोलकर अपना नजरिया रखें और आदर व सम्मान सहित बेझिझक होकर प्रस्तावों पर विचार करके उचित निर्णय लेंं। इन्हीं शब्दों के साथ मैं आपका आह्वान करता हूं। अपने विचार प्रस्तुत करने से पहले निवेदन करता हूं कि वक्ता संक्षिप्त रूप में केवल मुद्धों से सम्बन्धित अपनी बात कहे ताकि सभी आये हुए साथियों को अपनी बात कहने का मौका मिल सके। परस्पर एक दूसरे के विचारों का सम्मान करे -

कहा हैं - जो रख सका नहीं मान ओरों का
रहेगा मान कैसा मन रखे।

इस समय संयोजक ने कार्यवाही का ब्यौरा देते हुए कुछ फेरबदल की घोषणा की जिससे अध्यक्ष महोदय ने सम्मेलन को अपना संदेश पढ़कर
सुनाया :










सर्वगोत्रा मुखिया महासम्मेलन के माननीय संयोजक कर्नल चन्द्रसिंह दलाल









वं हरियाणा नवयुवक कला संगम, रोहतक के आदरणीय कार्यकारी निदेशक डॉ० जसफूल सिंह जी,सर्वगोत्रा मुखिया महानुभावो, बुजुर्गो, भाईयों, अज+ीजो तथा अन्य विशेष आमन्त्रिात गणमान्यजनो सर्वप्रथम मैं इस सम्मेलन के संयोजकों को हार्दिक बधाई देता हूँ जिन्होंने इस दिशा में यह सराहनीय प्रयास किया है।

कहा है :
संक्षेप बुद्धि को परिलक्षित करता है और कहने-सुनने वाली बात के तो ढाई ही अक्षर होते हैं।

समाज के वे लोग महान् होते हैंं जो समाज की सभी इकाईयों, समूहों, समुदायों और घटकों के बीच आपसी प्रेम और समन्वय एवं सौहाई का सन्मार्ग प्रशस्त करने का यथा सामथ्र्य प्रयास करते है। मुझे यह पूर्ण आशा है कि यह शुभ प्रयास अवश्य सफल होगा।

क्या गाम राम और पंच परमेश्वर वैदिककाल से ही सामाजिक समस्यों के सुलझाने में जात-बिरादरी और गोत्राों की पंचायतों की अहम् भूमिका रही है और आगामी भी रहेगी। और कभी - २ जो विवाद गोत्राों में उठ खड़े होते हैंं उन्हें अपनी परिपक्व बुद्धि और अमूल्य अनुभव से शान्तिपूर्वक सुलझाने में सफल होगे। जिस आत्म विश्वास के साथ यह कार्यक्रम आयोजित किया जाता है - उसके बारे कहा हैं

क्या करू? कैंसे करूं? मैं मंजिल तक कैसे पहुंचूंगा? जो इसी सोच-विचार में पड़ा रहता हैं, वह कुछ नहीं कर पाता। उसका विश्वास मर जाता है। एक सुप्रसिद्ध कवि ने कहा है - ‘जीवन से उन्मुक्त होकर संसार की लहरों में बहने दीजिए। कभी लहर आप पर होकर गुजरेगी, कभी आप लहरों पर उतरेंगे लेकिन समुद्र की गोद में उसकी तरंगों से खेलने का साहस और आत्मविश्वास आप में जागृत होगा। किसी भी कार्य में लगने से पूर्व जिनके संकल्प अधूरे रहते हैं अथवा जो संशय में पड़े रहते हैं, वे कोई बड़े काम नहीं कर पाते और कुछ करते भी हैं तो उसमें असफल ही होते हैं जिसके कारण उनका रहा-सहा विश्वास भी मर जाता है।









आत्मविश्वास की ज्योति प्रज्ज्वलित करने के लिये उस काय्र में प्राण-प्रण से जुटना चाहिए जो स्वयं को हितकर लगता है। जिसे अंतरात्मा अच्छा समझे उस
काम को अपने जीवन का, स्वभाव का अभिन्न अंग बना लेना चाहिए। इससे अपने विश्वास को बल मिलेगा।

इसके लिये आवश्यक है सफलता-असफलता को गौण मानकर उस कार्य को प्रधान माना जाए। अपने-आपको भाग्यशाली-महत्वपूर्ण समझने वालों को संसार भी रास्ता देता हैंं। हृदय में कूट-कूट कर भर लेना चाहिए कि हमें किसी महान उíेश्य की पूर्ति के लिये ही ईश्वर ने धरती पर भेजा है। इस तरह की बलवती श्रद्धा अपने विश्वास को परिपुष्ट करेगी। संकल्प ही विश्वास की साधना का आधा काम पूरा कर देता है। जिम्मेदारियों और आलोचनाओं से तनिक भी विचलित हुए बिना कार्य करते रहने से स्त्राष्टा के प्रेम को भी पाया जा सकता है, यह मेरा भी विश्वास है।

मैं आप सब भाईयों का आभारी हूँ जिन्होंने मुझे इस सर्वगोत्रा महा सम्मेलन के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी।

जयहिन्द !
जय महा पंचायत !!

इस समय प्रधान जी का स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण उन्हें जाना पड़ा और कार्यवाही को सरंजाम देने के लिए व्योवृद्ध शिक्षाविद प्रो० हरी सिंह खेड़ी जट जिला झज्जर को सभा में उपस्थित व्यक्तियों ने पदासीन किया।

प्रथम भाग में खुला अधिवेशन हुआ । जिसमें विभिन्न वक्ताओं ने बारी बारी से भागीदारी जताई और प्रत्येक वक्ता ने बदले हुए समय में समाज की दशा का जिक्र किया और गम्भीर व चिन्तनीय सवाल खड़े किए।
सर्वप्रथम हरस्वरूप बूरा (विशेष प्रतिनिधि) : आज वो निष्पक्षी पंचायती नहीं रहे जो पहले होते थे। हमें आधुनिक समय के मुताबिक बदलने की आवश्यक्ता है। मेरा विनम्र निवेदन है कि आप पंचायत में जाएं तो निष्पक्ष होकर जाएं।

रणसिंह (पूर्व प्रधान, अठगामा, गौत्रा मुखिया) : समाज दो मुख्य कुरीतियों पर ध्यान दे। पहली ब्याह शादी में गौत्रा के झगड़े, दूसरा रोजाना लड़कियों को छोड़ा जाना। मेरा गौत्रा विवादों के बारे में सुझाव है कि अगर बच्चे की दादी जिन्दा है तो दादी का गौत्रा छोड़ दिया जाए, वरना
शादी कर दी जाए। जो लड़की अपने पिता के घर अपने बच्चों के साथ रहती है, उस लड़की के बच्चे अपने नाना का गौत्रा अपनाएं। गोत्रा विवाद में दोषी लड़के-लड़की को उनके माता-पिता को सामाजिक रूप से सजा देनी चाहिए ताकि समाज की मर्यादा बनी रहे। जिस गांव में एक तिहाई से नीचे के गोत्रा लेग रहते हैं, उनके गोत्रा की लड़की की शादी करवा दी जाए। लड़की छोडने के मामले में भी दोषी पक्ष को हर हालत में सामाजिक रूप से सजा दी जानी चाहिए।

डा० सन्तराम देशवाल (प्राध्यापक) प्रतिनिधि देशवाल गोत्रा : हमारे बच्चे हमारी जड़ हैं, वह जड़ खोखली होने लगी है। लड़को ने पढ़ना छोड़ दिया है। गांव की गली-चौराहों पर आधी आधी रात तक आवारागर्दी करने लगे हैंं। बुजुर्ग उन्हें रोकने व टोकने से कन्नी काट रहे हैं। नवयुक शराब, स्मैक, चरस, ताश आदि असंख्य व्यसनों के आदि हो चुके हैंं वे चरित्राहीन हो चुके हैं। पढ़ने जाने की बजाये आवारागर्दी व लड़कियों के साथ छेड़खानी करते हैं। चुंकि हमारा भविष्य हमारे नवयुवक हैं, तो उन्हें रास्ते पर लाना हमारा फर्ज है। इसके लिए हमें पंचायतें करनी
पड़ेंगी, आवारागर्दी करने वाले लड़कों के खिलाफ सख्त सामाजिक शिकंजा कसना होगा और इस सम्बन्ध में ठोस कदम उठाने होंगे, वरना हमारा भविष्य बड़ा विभत्स होगा।
रामफल सिंह दहिया (दहिया गोत्रा मुखिया) : गोत्रा-विवाद तब तक बड़ा विवाद नहीं बनता जब तक इसमें चोरी न की जाए। गोत्रा छिपाकर रिश्ते करने पर ही गोत्रा विवाद खड़े होते हैं। अगर गोत्रा विवाद उठते हैं तो कुछ पंचायती भाई अहं के वशीभूत होकर उस विवाद में अड़चने डालकर और भी जटिल बना देते हैं। ऐसे भाईयों को अहं छोड़ना होगा। लड़की छोड़ने के मामले में मेरा सुझाव है कि जांच परख के बावजूद लड़की अपनी ससुराल में तालमेल नहीं बिठा पाती और बात तलाक तक पहुंचती है तो लड़की की ससुराल वालो को चाहिए कि वह उसे धैर्य से परिवार के अनुकूल ढ़ालें, उसे छोड़े नहीं।

सत्यवीर सिंह (ओहलान गौत्रा मुखिया, सरपंच नयाबांस) : गोत्रा विवादों में कुछ लोग मुछों का सवाल बनाकर बखेड़ा खड़ा किए रखते हैं। उन्हें सुधारना होगा। जहां तक संभव हो अपनी मां का गोत्रा और यदि दादी जीवित हो तो उसका गोत्रा ही बचाया जाए। बाकि रिश्ते कर देने चाहिएं क्योंकि मेरे गांव में ११ गोत्राों के लोग रहते है, अगर उन्हें बचाया जाए तो मेरे गांव में शादी होनी ही बन्द हो जायें। गोत्रा विवादों के सम्बन्ध में मेरा यही कहना है कि जो चीज निभने वाली है उसको होने देना चाहिए उनपर बेवजह विवाद क्यों? वैसे मेरा मानना है कि कुछ समस्याएंे समय पड़नें पर खुद ही हल हो जाती हैं या यों कहें कि समय खुद ही सबसे करवा लेता है।

धर्मसिंह (सहरावत गोत्रा प्रतिनिधि) : २१वी सदी में भी हम पुरानी बातोें को लेकर संकीर्णता के चलते स्वार्थ के वसीभूत होकर पिछड़े हुए हैं। समाज के गोत्रा विवादों के अलावा भी अनेंको आडम्बर, रूढ़ियां हमारे लिए समस्या बनी हुई हैं। हमें उनको भी गम्भीरता से लेना चाहिए। आज विदाई की बजाए सगाई पर ही दहेज दिया जाने लगा है। आखिर दहेज प्रथा को यह संरक्षण क्यों दिया जा रहा है। हमें अपनी फजूल खर्ची पर भी रोक लगानी होगी। बारात के गांव के बाहर स्वागत कार्यक्रम पर, तेहरवीं, सतहरवीं जैसी फिजूल रसमों पर गम्भीरता से विचार करके फिजूल खर्चों में कटौती करें। मेरे हिसाब से जिस गावं का खेड़ा हो उसी गोत्रा को बचाया जाना चाहिए। यही समय की मांग है। हमें अपने पुराने रीति रिवाजों को समय अनुरूप बदलना ही होगा। हमें समाज में व्यापक घूंघट प्रथा को भी तोड़ना होगा।

कामरेड रघुबीर सिंह ने कहा कि मैं भी इस बात का समर्थक हूं कि खेड़ा का गोत्रा माना जाए बाकी नहीं। आजकल पंचायती असली मसलों पर वाद प्रतिवाद नहीं करते। बल्कि अहं में चलते लांगड़ बांधे रहते हैं । आज पहले की तरह न तो बच्चे पढ़ते हैं और न ही अध्यापक बच्चे को पढ़ातें हैं। यदि अध्यापक बच्चे को मारपीट दें तो घर वाले बवाल मचा देते हैं। हर घर में टी०वी० हर समय चलता रहता है। कोई उसके दुष्परिणामों के बारे में नहीं सोचता। पश्चिमी संस्Ñति का नंगापन घर घर टी०वी० के जरिए आसानी से पंहुच रहा है और हमारी संस्Ñति, समाज व संस्कारों को खोखला कर रहा है। टी०वी० पर अश्लील कार्यक्रमों के जरिए हमारी संस्Ñति की चोरी हो रही है। इस चोरी को रोकने के लिए भी पूरे समाज को गम्भीरतापूर्वक सोचना चाहिए।

चौधरी महताब सिंह (राणा गोत्रा प्रतिनिधि) : मैं भी इस बात का स्मर्थक हूं कि अपनी मां का व यदि दादी जीवित है तो उसका ही गोत्रा बचाया जाना चाहिए। क्योंकि किसरैन्टी में १३ गोत्रा हैं। यदि उन्हें छोड़ने लगे तो रिश्ते ही बन्द हो जाऐंगे। यदि हम एक जुट हो जायें तो हमारे सामने कोई विवाद नहीं टिक सकता।
चौधरी प्रीतम सिंह (बलहारा गोत्रा प्रतिनिधि) : एक तो हमें बाल विवाह की कुप्रथा पर ध्यान देने की कड़ी आवश्यकता है दूसरा महिलाओं पर जो घर व खेती आदि का सारा काम लाद दिया गया है और मर्द लोग शराब, ताश आदि व्यसनों में पड़ गए हैं उस पर गम्भीरता से विचार की आवश्यकता है। तीसरे गावं में बेरोजगारी युवकों
की फौज बड़ी हो गई है और काम किए बिना अपराध की दहलीज पर खड़ा है उसकी ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। चौथे शादी समारोह पर जो फिजूल खर्ची हो रही है उसको भी दूर करने की आवश्यकता है।

चौधरी राम मेहर हुडा (हुìा गोत्रा मुखिया) : पंचायतों का काम समाज की कुरितीयों को दूर करना ही है। लेकिन कई फैसलों में हमारी पीडी अड़चन बन कर खड़ी होने लगी है। हमें समय अनुरूप फैंसले लेने की सख्त जरूरत है।

चौधरी रघबीर सिंह (दहिया गोत्रा प्रतिनिधि) : हमारी प्राचीन सम्पन्न प्रणाली में काफी त्राुटियां व कमजोरियां आ गई हैं । समय की मांग है कि उन त्राुटियों और कमजोरियों को दूर करके सम्पन्न गोत्रा प्रणाली को पुन: सशक्त बनाया जाए। सरकारी व्यवस्था के चलते आज समस्याएं हैं । हमें प्राचीन इतिहास में ही लौटना पड़ेगा। क्योंकि हम इस विज्ञान युग में जितनी उन्नती कर रहे हैं, पुरानी अमूल्य परम्परा को खो भी रहे हैं। भाई चारे की परम्परा समाप्त हो रही है। युवकों को घर व बाहर दोनोें का चरित्रा खराब हो गया है। समाज में आई सब बुराईयों को दूर करने के लिए हमें स्वामी दयानन्द की शिक्षाओं और आर्य समाज की विचार धाराओं पुर्नजीवित अपने बच्चों को संसकारिक बनाना होगा।
श्रीमति जगवन्ती सांगवान (अध्यक्ष अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति हरियाणा) : समाज के हर क्षेत्रा में लड़कियां अव्वल हैं तो फिर लड़कियों के साथ भेदभाव क्यों ? जब लड़कियां अपने माता पिता का नाम रोशन कर रहीं हैं तो उन्हें पैदा करने में गुरहेज क्यों ? लड़कियों के साथ होने वाली छेड़छाड़ व असुरक्षा के खिलाफ हमें गम्भीरता से सोचना होगा। इन सभी सामाजिक कुरितीयों के खिलाफ हमारे दूसरे राष्ट्रीय संग्राम की आवश्यकता है। मेरा सुझाव है कि लचीला रूख अपनाते हुए धैर्य व संजीदगी से गोत्रा विवाद सुलझा लिये जाने चाहिए।

श्रीमति विद्या देवी, अध्यापिका : गोत्रा मामलों में पीड़ित परिवारों के प्रति संवेदना क्यों नहीं है। लड़कियां असुरक्षित हैं। लड़के उनके बाथरूमों तक घुस रहे हैं। उन्हें पेशाब तक करवाने के लिए साथ जाना पड़ता है। आखिर हमारा समाज इस ओर ध्यान क्यों नहीं देता। जब औरतें दो-तिहाई और मर्द एक-तिहाई काम करते हैं तो पंचायती मामलों में भी महिलाओं को भी उचित प्रतिनिधित्व क्यों नहीं मिलता ?

श्री धर्म पाल मलिक (निदेशक आकाशवाणी, रोहतक) : हमने अपने बच्चों में संस्कार नहीं भरे। इसी वजह से आज समस्याएं विकट रूप से खड़ी हुई हैं। मेरे विचार से मनुष्य को निराशावादी नहीं होना चाहिए, मैं भी निराशावादी नहीं हंू। लेकिन मनुष्य को इतना आशावादी भी
नहीं होना चाहिए कि बिना किसी संघर्ष के ही चमत्कार
का इंतजार करे। जब हर क्षेत्रा में लड़कियां आगे जा रही हैं तो लड़की व लड़के में भेदभाव क्यों ? जो बच्चे मां बाप से बेकाबू होते जा रहे हैं उसके लिए मां बाप दोषी क्यों ? इसके लिए पूरा समाज ही दोषी है। मेरी सलाह है कि हमें
भी बदलते समाज के साथ बदलना चाहिए वर्ना हम मिट जायेंगे। एक बात और जब हमारी मातृभाषा हरियाणवी है तो उसे बोलने में शर्म कैसी ?

श्री रणधीर सिंह देशवाल (विशेष आमंत्रिात) : सरकार को चाहिए कि पंचायतो को विशेष अधिकार दिया जाए । सरकार संस्Ñति व समाज को बचाने के लिए टी०वी० पर अश्लील कार्यक्रमों कें प्रसारण पर रोक लगाए। समाज को भी चाहिए की उसे अपने बच्चों में संस्कार भरने के लिए ज्यादा से ज्यादा कोशिश करनी चाहिए।

श्री नारायण सिहं तहलान : पंचायती निर्णय भी घटिया होने लगे हैंं । जब लड़के लड़की को संतान हो जाती है तो भी उसे भाई बहिन बनने को कहा जाता है। आखिर क्यों? दूसरी बात हमें अपनी मर्यादाओं को बनाए रखना तभी हमारा समाज बच सकेगा।

श्री शेर सिंह (कादयान गोत्रा प्रतिनिधि) : मेरा मानना है कि लड़के वालों पर दहेज के ८० प्रतिशत आरोप बेवजह लगते हैं । हकीकत में कन्या पक्ष वाले लड़की का सौदा करने लगे हैं। हमें इस कटु सत्य की ओर भी ध्यान देना होगा।

प्रोफेसर महा सिंह (नहरा गोत्रा प्रतिनिधि) : दो मां ओर दो दादी होने पर एक मां व एक दादी का गोत्रा छोड़ा जाना चाहिए ।


चौधरी भगत सिंह (मलिक गोत्रा प्रतिनिधि) : हमारे नवयुवक इस लिए भटके क्योंकि उनकी भावनाओं पर कुठारघात हुआ है, उन्हें कोई नौकरी नहीं, पेट

के लिए कोई काम नहीं मिलता। इसके बाद हमें अपनी कमियों को पहचानना होगा। उन्हें स्वीकार करना होगा और उन्हें तत्काल दूर करने का प्रयत्न करना होगा।

चौधरी रघुबीर सिंह (सांगवान गोत्रा प्रतिनिधि) : लड़कियों की शैक्षिक भावनाओं की कद्र करें । अपने पुराने रूढ़िवादी विचारों को बदलें। सत्राहवीं आदि के ढकोसला छोड़ें। किसी भी जात बिरादरी का बच्चा किसी एक क्षेत्रा में गांव का नाम रोशन करता है तो पूरा गावं उस बच्चे का सम्मान करे। कोई पंच सरपंच खराब है तो उसके लिए
सरकार नहीं बल्कि हम स्वयं जिम्मेदार हैं क्योंकि उन्हें हम लोग ही चुनते हैं। खास बात यह है कि समाजिक मामलों में दोषी को निष्पक्ष रूप से उचित सजा हर हाल में देनी चाहिए।

कैप्टन पिरथी सिंह ने अपने गांव की इस समस्या को सम्मुख रखा कि जब ख्ेाड़ा बसाया तो उस समय तीन बराबर के हिस्सेदार थे और तीन गोत्रा के थे। इसलिए इसको तीन गोत्रा का खेड़ा ही मानना चाहिए जो कि माना जाता है।










इसके उपरान्त भोजन अवकाश हुआ और तीसरे अधिवेशन में प्रस्तावों पर विचार विर्मश किया व निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किए गए :

पहला प्रस्ताव

निकट सम्बन्धियों द्वारा मृत्यु के उपरान्त तेरह दिन तक शौक मनाने की प्रथा का चलन है। जिसे तेरहवी कहते है। क्योंकि आज कल बदलते परिवेश में निकट सम्बन्धियों को मृत्यु की सूचना शीघ्र ही मिल जाती है तों तेरह दिन तक शौक सभा करने का औचित नही रह जाता। प्रस्ताव पर चर्चा करते समय यह भी कहने में आया की लम्बे अरसे से चली आ रही सामाजिक प्रथा कों ज्यों का त्यों रहने दिया जाए। लेकिन इस बात पर सर्व सम्मति जताई गई कि यदि कोई भाई इस अवधि को घटाकर सात दिन में ही शोक समाप्ति कर के हवन कराना चाहता है तो उसे ढ़ील दे दी गई। इस डील का प्रस्ताव सर्व सम्मति से पारित किया गया।

दूसरा प्रस्ताव

यह प्रस्ताव विवाह सम्बन्ध स्थापित करते समय गोत्रा छोड़ने से सम्बन्धित है। क्योंकि प्रत्येक गांव में कई गोत्रा बाहर से आकर बस गए है। इस विषय पर गहन चर्चा के उपरान्त निम्नलिखित ढ़ील दी गई। जिस गांव का मुख्य गोत्रा है। उसके इलावा उस गांव में दूसरे गौत्रा की चौपल अथवा नम्बरदारी है तो उस गोत्रा को बचाया जाएगा अन्यथा कोई जरूरी नही है। इस प्रस्ताव पर चर्चा करते समय कुछ प्रतिनियों द्वारा आपति उठाई गई और उसका ये कहकर समाधान हुआ कि यदि स्थानीय परिस्थितियों को यदि कोई व्यक्ति ध्यान में रखकर इस गोत्रा सीमा रेखा की छूट का प्रयोग करते हुए विवाह सम्बन्ध स्थापित करता है। तो उस पर कोई इतराज नहीं होगा और उसे प्रताड़ित तथा दंडित नही किया जाएगा। इस सुधार के साथ यह प्रस्ताव भी सर्व सम्मति से पास हुआ।

तीसरा प्रस्ताव

विवाह सम्बन्ध स्थापित करते समय यदि दादी की मृत्यु हो चुकी है तो दादी के गोत्रा को छोड़ने की ढ़ील दे दी गई है और चर्चा में यह बात उभर कर आई कि यदि किसी व्यक्ति का मन मानता है और दादी का गोत्रा छोड़ देता है तो उसे दंडित तथा प्रताड़ित नहीं किया जाएगा। अत: दादी की मृत्यु के बाद दादी के गोत्रा विवाह सम्बन्ध स्थापित किए जा सकते हैं।

चौथा व पांचवा प्रस्ताव

यह प्रस्ताव विवाह के उपरान्त विवाह विच्छेद से सम्बन्धित थे। जिस में विवाह विच्छेद करते समय लड़केे तथा लड़की वालों में किस को कसूरवार ठहराया जाए अथवा उन के साथ क्या व्यवहार किया जाए से सम्बन्धित थे। इन दोनो विषयों पर चर्चा करने के बाद कोई सहमति नहीं बन पाई और इन प्रस्तावों को ज्यों का त्यों छोड़ दिया गया।

इसके बाद प्रोफेसर हरी सिंह अध्यक्ष महोदय ने अध्यक्षीय भाषण में सभी तथ्यों का विवरण देते हुए सम्मेलन समाप्ति की घोषणा की । इसके उपरान्त डा० जसफूल सिंह ने आए हुए अतिथियों का पुन: आभार प्रगट किया और आशा की कि ऐसे महासम्मेलन भविष्य में भी किए जाते
इसके बाद प्रोफेसर हरी सिंह अध्यक्ष महोदय ने अध्यक्षीय भाषण में सभी तथ्यों का विवरण देते हुए सम्मेलन समाप्ति की घोषणा की । इसके उपरान्त डा० जसफूल सिंह ने आए हुए अतिथियों का पुन: आभार प्रगट किया और आशा की कि ऐसे महासम्मेलन भविष्य में भी किए जाते

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