dainik bhaskar
Tuesday, Mar 30th, 2010, 7:28 pm [IST]
सर्वखाप पंचायत जाट जाति की सर्वोच्च पंचायत व्यवस्था है। इसमें सभी ज्ञात पाल, खाप भाग लेती हैं। जब जाति , समाज, राष्ट्र अथवा जातिगत संस्कारों, परम्पराओं का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है अथवा किसी समस्या का समाधान किसी अन्य संगठन द्वारा नहीं होता तब सर्वखाप पंचायत का आयोजन किया जाता है जिसके फैसलों का मानना और दिशा निर्देशानुसार कार्य करना जरुरी होता है। सर्वखाप व्यवस्था उतनी ही पुराणी है जितने की स्वयं जाट जाति। समय-समय पर इसका आकर, कार्यशैली और आयोजन परिस्थितियां तो अवश्य बदलती रही हैं परन्तु इस व्यवस्था को आतताई मुस्लिम, अंग्रेज और लोकतान्त्रिक प्रणाली भी समाप्त नहीं कर सकी।
शिवजी के आव्हान पर पंचायत सेना ने राजा दक्ष का सर काट डाला था
'प्राचीन काल के गणराज्यों की सञ्चालन व्यवस्था सर्वखाप पद्धति पर आधारित थी. शिवाजी के आव्हान पर की पंचायती सेना ने राजा दक्ष का सर काट डाला था। महाराजा शिव की राजधानी कनखल (हरिद्वार) में थी. एक बार दक्ष ने यज्ञ किया था जिसमें शिव को छोड़कर सभी राजाओं को बुलाया था। पार्वती बिना बुलाये ही वहां पहुंची. वहां पर शिव का अपमान किया गया. यह अपमान पार्वती से सहन नहीं हुआ और वह हवनकुंड में कूद कर सती हो गई. शिव को जब पता लगा तो बहुत क्रोधित हुए। शिव ने वीरभद्र को बुलाया और कहा कि मेरी गण सेना का नेतृत्व करो और दक्ष का यज्ञ नष्ट कर दो. वीरभद्र शिव के गणों के साथ गए और यज्ञ को नष्ट कर दक्ष का सर काट डाला। सर्व खाप पंचायत और उसके गणों की यह सबसे पुरानी घटना है।
राम की व्यथा सुन हनुमान ने बुलाई थी खाप पंचायत
रामायण काल में इतिहासकार जिसे वानर सेना कहते हैं वह सर्वखाप की पंचायत सेना ही थी जिसका नेतृत्व वीर हनुमान ने किया था और जिसका प्रमुख सलाहकार जामवंत नामक वीर था. राम और लक्ष्मन की व्यथा सुनकर हनुमान और सुग्रीव ने सर्व खाप पंचायत बुलाई थी जिसमें लंका पर चढाई करने का फैसला किया गया. उस सर्व खाप में तत्कालीन भील, कोल, किरात, वानर, रीछ, बल, रघुवंशी, सेन, जटायु आदि विभिन्न जातियों और खापों ने भाग लिया था. वानरों की बहुतायत के कारण यह वानर सेना कहलाई. इस पंचायत की अध्यक्षता महाराजा सुग्रीव ने की थी।
श्रीकृष्ण ने कई बार पंचायतें की
महाभारत काल में सर्वखाप पंचायत ने धर्म का साथ दिया था। महाभारत काल में तत्कालीन पंचायतो या गणों के प्रमुख के पद पर महाराज श्रीकृष्ण थे। श्रीकृष्ण ने कई बार पंचायतें की। युद्ध रोकने के लिए सर्व खाप पंचायत की और से संजय को कौरवों के पास भेजा, स्वयं भी पंचायत फैसले के अनुसार केवल 5 गाँव देने हेतु मनाने के लिए हस्तिनापुर कौरवों के पास गए। शकुनी, कर्ण और दुर्योधन ने पंचायत के फैसले को ताक पर रख कर ऐलान किया कि सुई की नोंक के बराबर भी जगह नहीं दी जायेगी। इसी का अंत हुआ महाभारत युद्ध के रूप में. महाभारत के भयंकर परिणाम निकले। सामाजिक सरंचना छिन्न-भिन्न हो गई। राज्य करने के लिए क्षत्रिय नहीं बचे. महाभारत काल में भारत में अराजकता का व्यापक प्रभाव था। यह चर्म सीमा को लाँघ चुका था। उत्तरी भारत में साम्राज्यवादी शासकों ने प्रजा को असह्य विपदा में डाल रखा था।
इस स्थिति को देखकर कृष्ण ने अग्रज बलराम की सहायता से कंस को समाप्त कट उग्रसेन को मथुरा का शासक नियुक्त किया। कृष्ण ने साम्राज्यवादी शासकों से संघर्ष करने हेतु एक संघ का निर्माण किया। उस समय यादवों के अनेक कुल थे किंतु सर्व प्रथम उन्होंने अन्धक, भोज और वृष्नी कुलों का ही संघ बनाया. संघ के सदस्य आपस में सम्बन्धी होते थे इसी कारण उस संघ का नाम 'ज्ञाति-संघ' रखा गया। यह संघ व्यक्ति प्रधान नहीं था। इसमें शामिल होते ही किसी राजकुल का पूर्व नाम आदि सब समाप्त हो जाते थे। वह केवल ज्ञाति के नाम से ही जाना जाता था। प्राचीन ग्रंथो के अध्ययन से यह बात साफ हो जाती है कि परिस्थिति और भाषा के बदलते रूप के कारण 'ज्ञात' शब्द ने 'जाट' शब्द का रूप धारण कर लिया।
ठाकुर देशराज लिखते हैं कि महाभारत काल में गण का प्रयोग संघ के रूप में किया गया है। बुद्ध के समय भारतवर्ष में 116 प्रजातंत्र थे. गणों के सम्बन्ध में महाभारत के शांति पर्व के अध्याय 108 में विस्तार से दिया गया है । इसमें युधिष्ठिर पूछते हैं भीष्म से कि गणों के सम्बन्ध में आप मुझे यह बताने की कृपा करें कि वे किस तरह वर्धित होते हैं, किस प्रकार शत्रु की भेद-नीति से बचते हैं, शत्रुओं पर किस तरह विजय प्राप्त करते हैं, किस तरह मित्र बनाते हैं, किस तरह गुप्त मंत्रों को छुपाते हैं. इससे यह स्पस्ट होता है कि महाभारत काल के गण और संघ वस्तुतः वर्त्तमान खाप और सर्वखाप के ही रूप थे।
शनिवार, 3 अप्रैल 2010
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