ग्रामीण भारत अधिकार मंच, रोहतक
द्वितीय सर्व गोत्रखाप मुखिया महा सम्मेलन
६ सितम्बर, २००९
अभिनंदन
भाईयो,
मैं आपका पुन: ग्रामीण भारत अधिकार मंच, रोहतक की ओर से अभिनन्दन करता हूँ। इससे पहले कि हम इस आयोजन के असली मुद्दे पर विचार करें, मैं आपको इस सम्मेलन के कार्यक्रम के बारे में परिचित करवाना चाहता हूँ।
आपको याद होगा कि वर्’ा २००२ में इसी महीने की ८ तारीख को इसी प्रकार का एक सम्मेलन इसी स्थान पर और इसी भवन में किया गया था। हो सकता है आप में से कुछ महानुभव उसमें “ाामिल रहे हों। उस सम्मेलन में अनेक सुझावों एवं प्रस्तावों पर सर्वसम्मति बनी थी। कोई फतवा जारी नहीं किया गया था। सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया था कि यदि मृत्यु के उपरांत तेरह दिन बाद होने वाली “ाांति हवन अथवा यज्ञ की रस्म को यदि व्यक्ति वि”ो’ा का मन मानता है तो वह तेरह दिन से पहले भी सम्पन्न करवा सकता है। यह सबको छूट दी गई थी और इस पर अच्छा खासा अमल भी हुआ है।
दूसरा प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हुआ था कि यदि व्यक्ति चाहे तो “ाादी करते समय दादी का गोत्र छोड़ सकता है। इस छूट का भी बहुत से भाईयों ने प्रयोग किया है। इस प्रकार के सुधारों की आव”यकता को माना है।
गोत्र के रहनुमाओं!
आप जानते हैं कि पिछले कुछ महीनों से गोत्र खाप प्रणाली पर विवाद गहराया है। जिसमें कुछेक मीडिया के लोगों को भी “ाामिल कर लिया गया हैं, अथवा इस पारिवारिक एवं गोत्र सम्बंधी वाद-विवाद निपटाने की सामाजिक परम्परा का ज्ञान न रहने से स्वयं इनकी सोच भी खाप विरोधियों जैसी है। जो हो, एक बार फिर कौम के रहनुमाओं को हालात पर विचार विमर्“ा के लिए आज इकट्ठा होना पड़ा है। यहां हम आज इनमें से किसी घटना वि”ो’ा की जांच-पडताल करने अथवा उनपर अपना मत देने नहीं आए है।। इस महासम्मेलन का यह एजेण्डा नहीं है।। अपितु उन कठिनाईयों और वि’ायों पर विचार व चिंतन करंेगे, जो इस प्रकार के हालात से उत्पन्न हुए हैं।।
इन सब बातों पर विचार-करने के लिए इस सम्मेलन को दो भागों में बांट सकते है। दोपहर से पहले खाप व्यवस्था की प्रकृति और कार्यप्रणाली तथा अब उपजी हालत पर वि”ो’ा आमंत्रित विद्वानों के विचार आपके सम्मुख रखे जाएं। उसके बाद दूसरे सत्र में आप सभी महानुभावों के जो सुझाव व प्रस्ताव आएं, उन पर चिन्तन-मनन करके सर्वसम्मति से संकल्प तैयार हों।
सम्मेलन के सामने एक और स्थिति है। विभिन्न गोत्रों में आपसी तालमेल होना चाहिए ताकि समय समय पर उछने वाले विवाद कम से कम उपजें। इसकी क्या प्रक्रिया बने। साथ ही अपनी अपनी नौजवान पीढी को अपने परम्पराओं पर जागरूक करने के लिए क्या किया जा सकता है। इसपर भी विचार किया जा सकता है।
भाईयो!
मुझे यह कहते हुए गर्व होता है कि हजारों वर्’ा पुरानी चली आ रही गोत्र खाप प्रथा, जो आज भी प्रचलित है और इसका महत्व कम नहीं हुआ है और न ही आने वाले समय में इसकी महत्ता कम होगी, चाहे कोई इसके विरूद्ध कितना ही प्रचार-प्रसार कर लेवे। क्योंकि ऐसी पंचायतों के साथ हमे”ाा दैवीय “ाक्ति का साथ होता है। जब तक हमारी नियत में खोट नहीं होगा, तब तक हमारा कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। वैसे भी इतने पुराने रीति-रिवाज को एक ही झटके में तबाह व बर्बाद नहीं किया जा सकता है। हमें इस प्रकार की पंचायतों का किसी भी प्रकार के झगड़े को निपटाने की जो “ाक्ति निहित है, उसका प्रयोग करना चाहिए, जिसके वि’ाय में कुछ कथित बुद्धिजीवी अनभिज्ञ हैं। मुझे उनपर दया आती है जो इन पंचायतों पर प्रतिबन्ध की बात को बार-बार दोहराते हैं।
बंधुगण!
आप यहां मंथन के लिए पधारे और समस्याओं से जूझने की तमन्ना ले कर आए हैं। आज के सम्मेलन के सामने सवालों पर कोई वृहद चर्चा की “ाुरुआत न करके ग्रामीण भारत अधिकार मंच की ओर से सम्मेलन की दृ’िट के सवाल पर आपका ध्यान कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं की ओर दिलाने के लिए मैं चंद मिनट लेना चाहता हूं ताकि विचार विमर्”ा की पृ’ठभूमि स्प’ट रहे।
मैं ग्रामीण अंचल के क्षितिज पर काली घटा को स्प’ट तौर पर उभरते देख रहा हूं। उसकी सामाजिक जीवन”ौली खतरे में पड़ गई है। मैं जानता हूं कुछ बंधुओं के लिए इस “ौली में बचा कर रखने लायक कुछ नहीं है और उनकी मानसिकता बन चुकी है कि जितना जल्दी हो इसका अवसान ही बेहतर है जिससे कुछ भला ही होने वाला है! मैं अथवा यह मंच इन स्यानों में “ाामिल होने का मन नहीं रखते और न ऐसी अधकचरी आधुनिकता के हिमायती हैं जिससे मानवता विरोधी पूंजी का साम्राज्य मजबूती पकडे।
इसी जगह यह बात रेखांकित करना समीचीन होगा कि स्वयं विधि-विज्ञान के अनुसार भी संविधान व कानून समाज के लिए बने हैं, समाज कानून व किसी संविधान का दास नहीं रह सकता है। इसे बाइबल की तरह नहीं लिया जा सकता है कि किसी विवाद की प्रकृति को उसके हवाले से तय करने का तर्क उठाया जाए, जैसा खाप व्यवस्था के सवाल पर समाज के कुछ स्याने लोग अब करने लगे हैं। सच को तोलने का यह सर्वथा गैरवाजिब ढंग है। खाप की प्रासंगिकता को इस आधार पर नकारा जाना अनुचित है। कुछ नादान दोस्त आज यही कर रहे हैं। गोत्र पंचायत यदि किसी विवाद को निपटाने में गलती करती है तो उसे कंगारू न्यायलय की संज्ञा देकर अवांछित घो’िात करना गलत है। सरकारी अदालतें भी अपनी कमजोरयों से मुक्त नहीं हैं जिन्हें पारिवारिक व गांव के ठेठ आन्तरिक मामलों के निपटारे हेतु भी आदर्”ा बता कर चलने का उपदे”ा हो रहा है।
खाप प्रथा का आज भी महत्व कम नहीं हुआ है और न ही आने वाले समय में इसकी महत्ता कम होगी, क्योंकि समाज में अपनी परम्पराओं व रीतियों की अपनी ”ाक्ति होती हैै। एक तरह से जब ये समाज के बनाए कानून हैं, तो इनकी मान्यता किसी तरह कम नहीं मानी जा सकती है। हमें इस प्रकार की पंचायतों का अपनेे झगड़े को निपटाने की जो ”ाक्ति निहित है,। उसका प्रयोग करना चाहिए। इनपर आक्षेप करने वालों की समझ पर तरस आता है जो इन पंचायतों पर प्रतिबन्ध की बात को बार-बार दोहराते हैं।
इसका अर्थ यह नहीं है कि आज इन व्यवस्थाओं में चुनावी स्वार्थों के चलते घुस आए पराये तत्वों को भी गले लगाया जाए। इनसे तो मुक्त होना ही होगा, तभी यह स्वस्थ ढांचे की तरह फलेगीं। इसकी खूबसूरती इस बात में है कि इसे किसी ने बनाया नहीं, समय की जरूरत से उभरा हुआ अपना गठन है। इसका चरित्र अनौपचारिक है। यह इसकी ताकत है। इसीलिए यह लोगों के दिल के साथ जुड़ा है, जबकि सरकारी पंचायतें Åपर से लादे गए कानून द्वारा गठित औपचारिक रीत के संगठन हैं। इसकी दूसरी खासियत बहते पानी की तरह सतत् निर्मल काया रहने में है। तीसरे, इसकी कार्यप्रणाली ‘हा, मा, धिक’ पर टिकी है जिसमें किसी दो’ाी को कत्ल करना तो दूर ”ाारीरिक प्रताड़ना भी वर्जित है। कभी कोड़े मारने की सजा भी नहीं दी, जान लेना तो बहुत दूर की बात है। सामाजिक दबाव से काम लिया जाता है। चौथी प्रमुख खासियत इसके किसी स्थाई नेतृत्व से दूरी है। असल में, खाप व्यवस्था ने अपने असल स्वरूप में कभी नेतृत्व की धारणा को नहीं स्वीकारा। यह वर्तमान में चिपटा नया रोग है। सम्भवत: चुनावी हितों की दौड़ में लगे रहने वाले लोगों से यह वायरस आया है। स्वस्थ काया के लिए एक न एक दिन इससे छुटकारा पाना ही होगा।
यह तो स्वीकारना पड़ेगा कि आज खाप पंचायतों की कमान कुछ मनचले और गैर-जिम्मेदार लोगों के हाथों में भी आ जाती है और वह कई बार गैर-जिम्मेदाराना निर्णय जारी कर देते हैं।। ऐसा करके वे विरोधियों को अनचाहा मौका देते हैं।। यह ठीक नहीं है। इससे सदियों से चली आ रही खाप व्यवस्था को ठेस पहुंचती है, नीचा देखना पड़ता है। ऐसी स्थिति से बचना चाहिए। एक तथ्य ध्यान में रखने का है कि इन सब रीति-रिवाजों से आज का उनका नौजवान जानकारी के अभाव में गलत हाथों में खेल जाता है, इसके लिए गोत्र-मुखियाओं द्वारा अपने नौजवान तबके को सचेत करने की जिम्मेदारी अपने हाथ में लेनी चाहिए।
स्प’ट करना बेहतर होगा कि अकेले न तो हम, न ही सरकार और न ही अदालतें जौणधी, आसण्डा और ढ़राणा काण्डों को होने से रोक सकते हैं।। इन सबको तभी रोका जा सकेगा, जब हम सब मिलकर प्रयास करेंगे।। इस मामले में अदालत या फिर किसी पुलिस अधिकारी का दखल बेजा कसरत है।। उम्मीद है कि आज का सम्मेलन इन सब पहलूओं के अलावा ‘हिन्दू विवाह अधिनियम’ में आव”यक बदलाव एवं संशोधन करवाने की रणनीति तैयार करने जैसे मुद्दों पर गहन विचार करके अपना मत व्यक्त करेगा।
भाईयो!
स्प’ट है कि यह सम्मेलन किसी को किसी की जान लेने का समर्थन नहीं कर सकता है। यह भी स्प’ट है कि खाप पंचायतों की कार्यप्रणाली में अनेक खामियां आ गई हैं जिससे कुछ लोगों को अवांछित आक्षेप उठने का अवसर मिल जाता है। इन पहलुओं पर गहन मंथन की आव”यकता है। तो आईए अब हम मिल बैठकर इस पर खुले तौरपर विचार-विमर्श व चिन्तन करें।
शनिवार, 24 अप्रैल 2010
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