शनिवार, 24 अप्रैल 2010

खाप पंचायत का इतिहास /-राजेश कश्यप

खाप पंचायत का इतिहास
-राजेश कश्यप

‘खाप’ शब्द दो शब्दों ‘ख’ और ‘आप’ से मिलकर बना है। ‘ख’ का अर्थ है ‘आका’ा’ और ‘आप’ का अर्थ है ‘जल’ अर्थात ऐसा संगठन जो आका’ा की तरह सर्वोपरि है और पानी की तरह स्वच्छ, निर्मल और सबके लिए उपलब्ध अर्थात न्यायकारी हो।
खाप या सर्वखाप एक सामाजिक प्र’ाासन पद्धति है जो उत्तर भारत के उत्तर-प’िचमी प्रदे’ाों तथा राजस्थान, हरियाणा, पंजाब एवं उत्तर प्रदे’ा में अति प्राचीन काल से प्रचलित हैं। समाज में सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अथवा मनमर्जी व असामाजिक कार्य करने वाले लोगों पर लगाम कसने के लिए तथा समाज में स्थापित मान्यताएं, वि’वास, परम्पराएं एवं मर्यादाएं बनाए रखने के लिए समाज के प्रबुद्ध लोगों के समूह द्वारा निष्पक्ष न्याय करने की व्यवस्था ने पंचायत का रूप लिया।
यदि ग्राम स्तर पर मामला नहीं सुलझता था तो आसपास के गाँवों के मुखिया लोगों को बुलाया जाता था। प्रचलित भाषा में इसे ‘गुहाण्ड पंचायत’ कहा जाता था। किसी एक वि’ोष गोत्र से जुड़ी पंचायत को ‘गोत्र पंचायत’ का नाम दिया गया। जब कोई मसला इन पंचायतों से भी नहीं सुलझता था तो इन सभी गुहाण्ड गोत्र आदि पंचायतों के मुखियाओं को सामूहिक रूप से एक मंच पर आमंत्रित किया जाता था, जिसे ‘खाप पंचायत’ का नाम दिया गया। हर खाप के कुछ गाँव नि’िचत किए गए। उदाहरण के तौरपर बड़वासनी बारह के १२ गाँव, कराला सत्रह के १७ गाँव, चौहान खा के ५ गाँव, तोमर खाप के ८४ गाँव, दहिया चालिसा के ४० गाँव, पालम खाप के ३६५ गाँव, मीतरोल के २४ गाँव आदि। इस समय दे’ा में छोटी-बड़ी खापों को मिलाकर जाटों की कुल ३५०० खाप अस्तित्व में हैं।
जब जाति, समाज, राष्ट्र अथवा किसी समस्या का समाधान किसी अन्य संगठन द्वारा नहीं होता है तो ‘सर्वखाप पंचायत’ का आयोजन होता है, जिसके फैसले को मानना व उसके दि’ाा-निर्दे’ा के अनुसार काम करना अत्यन्त जरूरी बनाया गया।
प्राचीन काल के गणराज्यों की संचालन व्यवस्था सर्वखाप पर आधारित थी। यदि पौराणिक दृष्टि से देखा जाए तो भगवान ’िाव के आह्वान पर पंचायती सेना ने राजा दक्ष का सिर काट डाला था। रामायण काल में वानर सेना सर्वखाप का ही रूप मानी गई। महाभारत काल में सर्वखाप पंचायत गणों के रूप में विद्यमान थी, जिनके मुखिया भगवान श्री कृष्ण थे। महात्मा बुद्ध के समय भारतवर्ष में ११६ प्रजातांत्रिक गण थे। यही ‘गण’ व ‘संघ’ वर्तमान में ‘खाप’ व ‘सर्वखाप’ के प्रतिरूप कहे जा सकते हैं।
ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर लोक साहित्यकार देवी’ांकर प्रभाकर के अनुसार खाप परंपरा का इतिहास २५०० वर्ष पुराना है। पाणिनी ने भी अपनी रचना ‘अष्टाध्यायी’ में खाप पंचायतों का जिक्र करते हुए उसको समुचित सम्मान दिया है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर खाप पंचायतों ने तैमूरलंग के विरूद्ध युद्ध करने में अपना असीम योगदान दिया। औरंगजेब को छोड़कर सभी मुगल बाद’ााहों ने अपने दरबार में पंचायती प्रतिनिधि रखे थे और उनका सम्मान करते थे। औरंगजेब के ‘जजिया कर’ के विरूद्ध खाप पंचायत ने बगावत की थी, जिसके फलस्वरूप औरंगजेब ने उन्हें बन्दी बनाकर जेल भेज दिया था।
अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच हुए युद्ध में सदा’िाव राव भाÅ ने खाप पंचायतों की मदद ली थी। सन् ११९४ ई० में खाप पंचायतों का कुतुबुदीन ऐबक से भी टकराव हुआ। उत्तर प्रदे’ा के मुजफ्रनगर के सौरव गाँव में सर्वखाप पंचायतों का १३५० वर्षों का इतिहास संकलित किया गया है। १२०१ ई० में सिसौली में विजयरस की अध्यक्षता में सर्वखाप पंचायत हुई, जिसमें मोहम्मद गौरी के खिलाफ लड़ाई का निर्णय लिया गया। सन् १३०५ में सिगराना की अध्यक्षता में दिल्ली दरबार में खाप पंचायतों ने जनता के दु:ख-दर्द रखने का निर्णय लिया गया। इसी दौरान महाराजा हर्षवद्र्धन ने खाप पंचायतों का अध्ययन किया और उनको पूरा मान-सम्मान दिया। १२ जुलाई, १८५७ में सर्वखाप पंचायतों ने अंग्रेजों से कई जगह टक्कर ली थी। १२ जून, १९८४ को गोहाना में विवाह-शादियों में फिजूलखर्ची रोकने के लिए सर्वखाप पंचायत बुलाई गई थी।
लुहारू नवाब के खिलाफ चलाए गए प्रजामण्डल आन्दोलन में सर्वजातीय सर्वखापों का अहम् योगदान रहा। दादरी के किला मैदान में लड़ी गई लड़ाई सर्वखाप पंचायतों के झण्डे के नीचे लड़ी गई थी, जिसमें महताब सिंह को राजा और राव राम कि’ान गुप्ता को डिप्टी स्पीकर बनाया गया। राजा के समानांतर सर्वखाप पंचायत का शासन चलाया गया। सामाजिक कुरूतियों के खिलाफ आर्य समाज ने भी सर्वखाप पंचायतों का सहयोग लिया। ३१ अक्तूबर, १९८४ को बेरी में सर्वखाप पंचायत स्वामी ओमानंद सरस्वती की अध्यक्षता में हुई, जिसमें सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लड़ाई जारी रखने का निर्णय लिया गया। सन् १९५५ में शराबबन्दी में सर्वखाप पंचायतों ने भी अपनी भागीदारी की थी।

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